बागपत। नगर के पक्का घाट स्थित भगवान परशुराम भवन में चल रही हनुमत कथा के अंतिम दिन कथा व्यास अरविन्द भाई ओझा ने हनुमान जी की जीवन लीला पर प्रकाश डाला।
कहा कि हनुमान जी के मंदिर के साथ अगर अखाड़ा नही है तो मंदिर अभी अधुरा है। हमारे मन्दिर केवल पूजा करने का स्थान नही है, मन्दिर समाज की जाग्रति के केन्द्र बनने चाहिए। कहा कि हमारी जैसी दृष्टि होती है वैसी ही हमें सृष्टि दिखाई देती है। हनुमान जी राक्षसों की नगरी लंका में भी सज्जन लोगों की खोज करते है और उन्हें वहाँ विभीषण जी मिलते है।
देश के महापुरुषों तुलसीदास जी, समर्थ गुरु रामदास जी व मालवीय जी आदि ने हनुमान जी को आधार मानकर रामलीला अखाड़े व महावीर दल के माध्यम से समाज जागरण करने के लिए काम किये। हनुमान जी ने भगवन के काम के लिए अपने नाम को मिटा दिया। लंका में हनुमान जी का नाम कई नही जानता केवल राम दूत के नाम से ही सब जानते है। लंका में मां जानकी की स्थिति को देखकर हनुमान जी को अपना शिव रूप याद आ गया और उन्होंने अपने कोप से लंका को जला दिया। सुन्दर कांड में माँ जानकी हमे संदेश देना चाहती है की मृत्यु का भय होने पर भी हमे अपने सतित्व की रक्षा कैसे करनी चाहिए। लंका विजय के बाद प्रभु श्री राम ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया की हनुमान मेरे सहित जो तेरी कीर्ति गायेगा वो बिना प्रयास ही भाव सागर से पार हो जायेगा। सुन्दर कांड की कथा अनुग्रह की कथा है। भगवान हमे बताना चाहते है की जो मुझसे विमुख हो जाते है मैं उन्हें सम्मुख करने के लिए स्वयं प्रयास करता हूँ और हनुमान जी जैसे आचार्य को भी भेजता हूँ। कथा में विद्या भारती के अखिल भारतीय पर्यावरण प्रमुख देरामाराम, संजीव राजपूत, देव मुनि महाराज, राजपाल शर्मा, राधेश्याम शर्मा, पूर्व प्रधानाचार्य जयपाल शर्मा, निशांत वत्स आदि मौजूद थे।
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